देश में वसंत ख़त्म हुआ नहीं कि गर्मी शुरू हो गई। और अप्रैल महीने की शुरुआत के साथ ही गर्मी ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। देश के कई हिस्सों में पारा लगातार बढ़ रहा है। लू का असर अभी से शुरू हो गया है। मौसम विभाग ने इसकी वजह से एडवाइज़री में लू (हीटवेव) का एलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग ने शनिवार (6 अप्रैल) को कहा है कि अगले दो दिनों के दौरान दक्षिण भारत के कई राज्यों में लू चलने की संभावना है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में तापमान अभी ही 43 डिग्री पहुंच चुका है। जो कि अगले कुछ दिनों में और बढ़ने वाला है।
कालकाजी डीडीए फ्लैट्स में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री और आप नेता सौरभ भारद्वाज के नाम के सारे बोर्ड पर सफ़ेद पेंट पोत दिया गया है। ज़ाहिर है चुनाव करीब है और आचार संहिता लागू है तो इस तरह के प्रचारक बोर्ड्स को या तो ढक दिया जाता है या किसी तरह उसमें लिखा नाम छुपा दिया जाता है। मार्केट में ही बोर्ड के बिल्कुल ठीक सामने सब्ज़ी बेचने वाले एक दंपत्ति ने भी यही कहा- “जो लोग सड़क पर सफ़ेद लाइन बनाते हैं उन्होंने ही ये किया है।” जब हमने और पूछा तब उन्होंने बताया कि- “ऐसा तो हर चुनाव से पहले होता है। जब चुनाव हो जाएंगे तब जो नेता चुनकर आएगा उसका नाम इधर लिख दिया जाएगा।”
हम अक्सर कुछ बुनियादी सवालों पर ‘कलेक्टिव’(सामूहिक) का टैग लगाकर उसे नज़रअन्दाज़ कर दूसरे-तीसरे पर टालते जाते हैं। लेकिन अक्सर ये भूल जाते हैं कि वो कलेक्टिव दरअसल सभी व्यक्तिगत से मिलकर ही बनता है और ऐसे में जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है वो है ‘व्यक्तिगत’!
राजधानी दिल्ली के दिल में छुपा एक महल जो अपनी गुमनामी में नाम कमा रहा है। कहानी 'मालचा महल' की है। मालचा महल जो दिल्ली ही नहीं, भारत की सबसे डरावनी जगहों में शुमार है। इसके भूतिया होने को लेकर तरह-तरह की कहानियाँ हैं। पर आश्चर्य है कि अधिकतर लोग इसके बारे में जानते ही नहीं।.
यूँ तो अमृता प्रीतम पर न जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं फिर भी ये कुछ ज़्यादा ख़ास है। ख़ास इसलिए कि इसके पहले तक जो कुछ भी और जितना भी अमृता जी के बारे में लिखा गया था, उनमें कभी साहिर का ज़िक्र आता तो कभी-कभी साथ चलते इमरोज़ का तो कभी ये “लव ट्रैंगल” लोगों को बहुत दिलचस्प लगता। प्रेम में पड़े लोगों को तो आकर्षित करता।
जावेद अली मेरे पसन्दीदा गायकों में से एक हैं जिन्हें सुनना बेहद पसन्द है। उनकी आवाज़ तो शानदार है ही, साथ ही उनका डिक्शन भी कमाल है; उनके गाने का हर शब्द आपको बराबर समझ आएगा।
दिल्ली में कचरा प्रबंधन को दुरुस्त करने के लिए दिल्ली सरकार अपने स्तर पर काम कर रही है। इसके लिए ‘ज़ीरो वेस्ट कॉलोनी’ जैसे तमाम तरह के उपाय किए जा रहे हैं। लेकिन कचरा प्रबंधन में सबसे बड़ी चुनौती कचरा एकत्रित करने की है। यूएनईपी की एक रिपोर्ट के अनुसार- भारत का 40% कचरा एकत्रित न होकर जहां-तहां कूड़े के रूप में पड़ा रहता है।
कोई कविता-कहानी, उपन्यास या कोई भी साहित्यिक रचना पढ़ते हम सब बहुत ज़्यादा सोचने लगते हैं कि आख़िर इसका मतलब क्या है? जो हमें समझ आया उसको नकारकर उसमें कोई गूढ़ रहस्य खोजने में लगे रहते हैं। जो कि अपनी जगह कुछ हद तक ठीक भी है। लेकिन मुझे इस बात से बहुत आपत्ति है।
मुझे लगभग तीन साल हो गए हैं केशदान किए। ये यहाॅं साझा करना ज़रूरी लगा क्योंकि इसको लेकर हमारे बीच जागरूकता कम है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भी मैं केशदान का ज़िक्र किसी से करती हूॅं तो अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती और काफ़ी बार हैरत में पड़ जाते। कारण कई हो सकते हैं।
बिहार के वैशाली जिले के एक छोटे से गांव में मातो देवी और उनका परिवार रहता है। चुनावी साल है और घरों में बहस छिड़ी है कि कौन अच्छा काम करेगा, हम किसे वोट करें? सब ने अपना-अपना कैंडिडेट (उम्मीदवार) चुन लिया। पर ये क्या! सबने तो एक ही चुन लिया। सबने कहा हम तो इसे ही वोट देंगे। अरे नहीं! मातो देवी ने अपना पसंदीदा उम्मीदवार घोषित किया और बोली कि मैं तो इसे ही वोट दूंगी। एकाध ने इरादा बदलने की कोशिश की। पर वो नहीं पलटी बल्कि बोली- “जिसको सोचा है उसी को अपना वोट दूंगी, मेरे लिए उसी ने काम किया है।”
हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने कर्मचारियों के सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल करने के सम्बन्ध में नीति तैयार करने के लिए एक समिति बनाई है। इस पर डीयू में पढ़ा रहे शिक्षकों का कहना है कि यह उन पर ऑनलाइन निगरानी रखने की रणनीति है। हालाॅंकि वाजिब सवाल यह होना चाहिए कि आख़िर ये नीतियाॅं लागू करने की ज़रूरत क्या है जब पहले ही एक व्यक्ति के रूप में उन पर वे सभी नीतियाँ लागू होती हैं जो किसी भी सामान्य व्यक्ति पर सोशल मीडिया इस्तेमाल को लेकर होते हैं। तो विभिन्न परतों पर उनके शेयर किए जानकारी को फ़िल्टर करने का क्या औचित्य है?
हाल के दिनों में सीबीएसई अपने सिलेबस में बदलाव को लेकर बहुत सुर्ख़ियों में रहा हैं। सिलेबस में इतिहास सम्बन्धी विषयों को नए नज़रिए से देखने की कोशिश के साथ ही इनमें बदलाव भी हो रहे हैं। लेकिन विमर्शों से जुड़े विषयों का क्या? ख़ासकर पाठ्यक्रम में स्त्री विमर्श से जुड़े मुद्दे? कोरोना काल में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई जा रही दो कविताओं पर ऑनलाइन आपत्ति तो जताई गई लेकिन फ़िर उनका क्या हुआ?
‘फ़ेमिनिज़्म’ या ‘नारीवाद’ शब्द तो हम अक्सर सुनते हैं लेकिन इसका अर्थ कितना समझते हैं?